प्रकृति से जुड़ने की आध्यात्मिक साधना है वृक्षारोपण।
देवरिया टाइम्स- कई बार हम सोचते हैं कि दुनिया में इतनी समस्याएँ हैं- मैं अकेला क्या कर सकता हूँ? लेकिन सच यह है कि प्रकृति हमें अवसर देती है, माध्यम बनाती है, और हम यदि उसका साथ दें तो दुनिया को बदलना बिल्कुल भी असंभव नहीं। आम की गुठली को धोकर, उसे जून-जुलाई के महीने में सड़क के किनारे, खाली या उपयुक्त भूमि में रोप देना कोई बड़ा कार्य नहीं है- पर यह छोटा-सा कर्म एक नए जीवन की नींव रखता है। एक वृक्ष न केवल फल देता है, छाया देता है, बल्कि वह आने वाली पीढ़ियों को एक सजीव उदाहरण देता है कि एक बीज से संसार बदल सकता है।
वृक्ष लगाने का अर्थ केवल हरियाली लाना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करना है। यह एक मौन प्रतिज्ञा है- कि हम अपने भीतर भी वही स्थिरता, सहिष्णुता और सहअस्तित्व की भावना विकसित करें, जैसी वृक्षों में होती है। एक वृक्ष अपना फल खुद नहीं खाता, अपनी छाया में खुद नहीं बैठता, फिर भी वह देता ही रहता है। यही कर्त्तव्यनिष्ठ जीवन का उदाहरण है।
आज का मनुष्य जब भागदौड़ और भौतिकता की चकाचौंध में प्रकृति से कट रहा है, तब वृक्षारोपण केवल पर्यावरणीय उपाय नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना बन सकता है। यह हमारे भीतर की नमी को लौटाने का मार्ग है- एक ऐसा रास्ता, जहां हम खुद को प्रकृति के साथ एकात्म अनुभव करें।
घर के आसपास या खेत-खलिहानों की परिधि में अगर हर साल कुछ वृक्ष भी नियमित रूप से लगाए जाएँ, तो वातावरण शुद्ध होगा, जलस्तर बढ़ेगा, पक्षियों की चहचहाहट लौटेगी, और सबसे बढ़कर- हमारे बच्चों को सिखाया जा सकेगा कि असली सुख स्थायी कार्यों में है, दिखावे में नहीं।
कहते हैं, एक पीढ़ी पेड़ लगाती है ताकि अगली पीढ़ी छांव में बैठ सके। तो क्यों न हम भी इस परंपरा के वाहक बनें? क्यों न अपने जीवन को वृक्ष के समान उदार, शांत और सहायक बनाएं? वृक्षारोपण कोई बाहरी अभियान नहीं है — यह एक भीतरी क्रांति है। एक पेड़ लगाकर हम सिर्फ ऑक्सीजन नहीं, बल्कि उम्मीद बोते हैं और यही उम्मीद, इस धरती को जीवन से भर देती है।[देवरिया टाइम्स]