देवरिया टाइम्स,
सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष महत्व रखता है, और इस दौरान शिवालयों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के देवरिया मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर स्थित रूद्रपुर कस्बे में स्थित दुग्धेश्वर नाथ मंदिर की जो छोटी काशी के रूप में प्रसद्धि है। बता दे कि यहां जो शिवलिंग है वह स्वयंभू हैं। वैसे तो यहां वर्ष भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि, अधिकमास और श्रावण मास में देश के कोने कोने से श्रद्धालु पूजन अर्चन के लिये आते हैं।
श्री लक्ष्मीनारायण धाम श्री दुग्धेश्वर नाथ तीर्थ सेवा न्यास के अध्यक्ष आचार्य आदित्य पांडेय का कहना है कि यहां के शिवलिंग को उज्जैन के महाकालेश्वर की तरह ही इसे पौराणिक महत्ता मिली हुई है। यह उनका उपलिंग है। त्रयंबकेश्वर भगवान के बाद रूद्रपुर में बाबा भोले नाथ का शिवलिंग धरातल से करीब 15 फीट नीचे हैं। यहां के शिवलिंग को उज्जैन के ज्योतिर्लिंग का उपलिंग माना जाता है, जो नीसक पत्थर का बना है। मान्यता है कि यहां के शिवलिंग को छूने मात्र से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। महाकाल के दरबार में सच्चे मन से आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं।
मंदिर के बारे में प्रमाण है कि ईसा से 332 वर्ष पूर्व महाराज दाघवाह के पुत्र ब्रजभान जन्हेिं ब्रह्मा तथा वशष्ठि सेन भी जिन्हें कहा गया है वह अपने कुछ साथियों के साथ अयोध्या से पूरब की तरफ चले और रुद्रपुर में घने जंगलों में डेरा डाल दिए, उस समय यह क्षेत्र जंगलों से आच्छादित था तथा जंगली जानवरों के भय से उनके साथी मचान बनाकर रहते थे।
बताया जाता है कि कुछ सैनिक रात में पहरा देते थे। एक दिन पहरा दे रहे एक सैनिक ने देखा एक गाय ब्रह्म बेला में एक स्थान पर चुपचाप खड़ी है और उसके थन से स्वतः दुग्ध की धारा गिर रही है। कुछ देर बाद गाय चली गई। रोजाना यह क्रिया देख सैनिक ने अपने अन्य साथियों से इसके बारे में बताया और साथी भी यह देख अचम्भित रह गये। इसकी जानकारी सैनिकों ने राजा को दी तो उन्होंने उस स्थल की खोदाई शुरू करा दी। ज्यों-ज्यों ही उस स्थल की खोदाई होती शिवलिंग नीचे चला जाता था। अंत में यह आश्चर्य देख कर खोदाई बंद कर दी गई। राजा ने पेड़ों को कटवाकर उस स्थल को साफ कराया और वेदपाठी ब्राह्मणो से रूद्राभिषेक कराया। इस स्थान का नाम दुग्धेश्वरनाथ रखा गया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल दधीचि और गर्ग मुनियों की तपोस्थली रहा है। क्षेत्र में भगवान शिव के नाम पर रुद्रपुर, गौरी, धतुरा, बौड़ी सहित दर्जनों गांवों के नाम बसे हैं तथा सप्तकोशीय में भोलेनाथ के शिवलिंग हैं। देश के जाने-माने लोगों ने मंदिर परिसर में जलाभिषेक किया है जिनमें स्व. इंदिरा गांधी, वीपी सिंह, स्व राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, योगी आदित्यनाथ, मोतीलाल वोरा, कलराज मिश्र शामिल हैं। बता दें कि यहां यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर भी भव्य मेला लगता है। आस-पास के अलावा दूर-दराज से आए लोग दुकानें सजाते हैं।
छोटी काशी’ के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश देवरिया जिले के रुद्रपुर स्थित बाबा दूधेश्वर नाथ का शिवलिंग का इतिहास सैंकड़ों साल पुराना है। यह स्थान दधिची और गर्ग ॠषियों की तपोस्थली भी माना जाता है। बाबा दुग्धेश्वरनाथ अनादि स्वयं भू-चंडलिंग हैं। इस सप्तकोसी इलाके में 11 अन्य शिवलिंग भी हैं। सावन और अधिक मास में यह पूरा क्षेत्र ही शिवमय हो जाता है। गोरखपुर गजेटियर में भी इसका उल्लेख मिलता है और स्वय चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में इसका वर्णन किया है ।
भगवान शिव की महिमा से भक्त अपनी मनोकामना को लेकर बारह महीने यहां जलाभिषेक करते हैं लेकिन फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में भक्त जलाभिषेक करने आते हैं। सावन के महीने में जहां प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में शिव भक्त बरहज स्थित सरयू नदी से जल भरकर लाते हैं और बाबा दूधेश्वर नाथ का जलाभिषेक करते हैं। इस मंदिर पर रुद्राभिषेक पूरे वर्ष के 12 महीने होता है।