देवरिया टाइम्स। लखनऊ 4 जून 2025

आज के दौर में सोशल मीडिया सिर्फ टाइमपास का जरिया नहीं रहा। अब यह एक ऐसा मंच बन चुका है, जहां एक क्लिक से कोई सराहना पा सकता है और एक पोस्ट से पूरी ज़िंदगी कठिनाइयों में फँस सकती है।

कई युवा आज चंद लाइक्स और फॉलोअर्स के पीछे वो सब कुछ कर रहे हैं जो न समाज के लिए उचित है, न परिवार के लिए, और न ही उनके अपने भविष्य के लिए। कोई गैरकानूनी चीज़ों का प्रदर्शन करते हुए वीडियो बनाता है, कोई सार्वजनिक आयोजनों में अनुशासनहीनता करता है, कोई धर्म या जाति के नाम पर आपत्तिजनक बातें कहता है, तो कोई असंयमित ढंग से खुद को प्रस्तुत करता है — यह सोचकर कि यह सब “ट्रेंड” है।

कुछ लोग खुद को पत्रकार बताकर बिना पुष्टि के अफवाहें फैलाते हैं, पुराने वीडियो शेयर करते हैं और सोचते हैं कि यही “कंटेंट क्रिएशन” है।

लेकिन एक बात ध्यान में रखिए —

जब कानून सख्ती से आगे आता है, तब वही लोग जो सोशल मीडिया पर आपकी सराहना कर रहे थे, सबसे पहले चुप्पी साध लेते हैं या मज़ाक उड़ाते हैं।

अगर कोई कानूनी मामला बन जाए या कोई समस्या खड़ी हो जाए, तो न फॉलोअर्स काम आते हैं, न तालियाँ। कोई ज़मानत कराने नहीं आता, न ही कोई कोर्ट-कचहरी में साथ देता है। आर्थिक बोझ भी आप ही पर आता है, समय भी आपका नष्ट होता है, और सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ता है।

जिन रिश्तेदारों को आपने अपने “वायरल वीडियो” भेजे थे, वही अब यह कह सकते हैं — “सोचा था यह बच्चा कुछ अच्छा करेगा, पर यह तो सोशल मीडिया की भीड़ में उलझ गया।”

माता-पिता आज बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा तो दे रहे हैं, लेकिन यह जानने की फुर्सत नहीं कि वे इस आभासी दुनिया में क्या कर रहे हैं। सोशल मीडिया की चमक में बच्चों के संस्कार, अनुशासन और ज़िम्मेदारी धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं।

अभिभावकों को समझना चाहिए कि मोबाइल देना सिर्फ सुविधा नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है।

और युवाओं को समझना चाहिए कि आज़ादी का अर्थ अनुशासन से मुक्त होना नहीं है।

आप जो बोलते हैं, पोस्ट करते हैं — वही आपकी पहचान बनाता है। सोच-समझकर बोलिए, जिम्मेदारी से साझा कीजिए।

रील से “रियल” बनने की होड़ में कहीं ऐसा न हो कि आपकी वास्तविक ज़िंदगी ही मुश्किल में पड़ जाए। दुनिया को सकारात्मक दिशा में मोड़ने की ताक़त आपके पास है। सवाल बस यह है —

क्या आप सच में बदलाव लाना चाहते हैं, या केवल ध्यान आकर्षित करना?

सोचिए…

आप क्या बनना चाहते हैं

— एक मज़ाक, या एक मिसाल?

By Santosh Vishwakarma

Santosh Vishwakarma Owner & Editor-in-Chief, Deoria Times | Journalist | Photojournalist Santosh Vishwakarma is the Owner and Editor-in-Chief of Deoria Times, a Hindi periodical registered under the Press Registrar General of India (Reg. No. UPHIN/2019/77982), Ministry of Information & Broadcasting, Government of India. With over 12 years of experience in news media, he holds a Bachelor's degree in Arts and a specialization in Mass Communication. Based in Deoria, Uttar Pradesh, he is known for fearless ground reporting, compelling photojournalism, and sharp coverage of local governance, corruption, and public issues. His integrity-driven journalism has drawn public attention and official response from national authorities, including the President’s Secretariat. Despite threats and pressures, he remains committed to raising voices that matter and bringing truth to light. 📷 Specialties: Ground reporting, visual journalism, social justice, civic accountability.

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