सिद्धी योग में जो शक्तियां हैं उसका वर्णन पुराणों में विस्तार से है । सिद्धी योग के चमत्कार भी पढऩे को मिल जाते हैं, लेकिन इस अद्भूत योग क्रिया का एक जीता जागता उदाहरण भारत में भी देखने को मिला । आधुनिक भारत में संतों और योगियों के पंथों में, एक विशिष्ट नाम सामने आता है ‘देवरहा बाबा। भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद को एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष ने अपने नाम से ख्याति दिलाई । कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है । वह अपने चमत्कार से हजारों लोगों को तृप्त करते रहे । उनके आशीर्वाद को आतुर सिर्फ़ आम लोग ही नहीं, बल्कि कई विशिष्ट लोग भी थे।
निर्वस्त्र जीवन
कुंभ कैंपस में संगम तट पर धुनि रमाए बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महराज के मुताबिक, पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने मचान में रहते थे । वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे । इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले हैं । राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनके शरण में रहते थे । देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मईल से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल धर्म-कर्म करते थे ।
देवरहा बाबा के अलौकिक कथन
देवरहा बाबा परंम् रामभक्त थे, देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तो को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे । वो सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना था :-
“एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो “
देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे । देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे ।
“ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने
प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:”
बाबा कहते थे, “जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती, अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो”। वे प्राय: गंगा या यमुना तट पर बनी घास-फूस की मचान पर रहकर साधना किया करते थे । दर्शनार्थ आने वाले भक्तजनों को वे सद्मार्ग पर चलते हुए अपना मानव जीवन सफल करने का आशीर्वाद देते थे । वे कहते, “इस भारतभूमि की दिव्यता का यह प्रमाण है कि इसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है । यह देवभूमि है, इसकी सेवा, रक्षा तथा संवर्धन करना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है ।”
प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था, “दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है ।”
बाबा के भक्तगण
बाबा के भक्तों में ना केवल आम नागरिक थे बल्कि दिग्गज राजनीतिक हस्तियां भी थीं। इनमें से प्रमुख हैं: मदन मोहन मालवीय, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, राजीव गांधी, पुरुषोत्तमदास टंडन, और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद । इन गणमान्यों ने पूज्य देवरहा बाबा का समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था । देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गाँधी हार गईं तो वह भी देवराहा बाबा से आशीर्वाद लेने गयीं उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है । फलस्वरूप 1980 में एक बार फिर वह प्रचंड बहुमत के साथ देश की प्रधानमंत्री बनीं ।
बाबा की लीला
श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे । उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था।
व्यक्तित्व
महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत देवरहा बाबा बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए । बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा । बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे । बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था । बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे । कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे । गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच लगता था । वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे । जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे । बाबा सभी के मन की बातें जान लेते थे । उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे ।
बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन में यमुना तट पर स्थित मचान पर चार वर्ष तक साधना की। अपना शरीर छोड़ने वाले देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्ति को लेकर तरह-तरह की बातें कही-सुनी जाती हैं ।
कहा जाता है कि बाबा जल पर भी चलते थे, उन्हें प्लविनी सिद्धि प्राप्त थी। किसी भी गंतव्य पर पहुंचने के लिए उन्होंने कभी सवारी नहीं की। बाबा हर साल माघ मेले के समय प्रयाग आते थे। यमुना किनारे वृंदावन में वह आधा घंटा तक तक पानी में, बिना सांस लिए रह लेते थे। देवरहा बाबा ने अपनी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी कोई दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की ऐसी भी भीड़ रही, जो उनमें चमत्कार तलाशती थी ।
कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में भी रहते थे । मंगलवार, संवत 2047 की योगिनी एकादशी तदनुसार, 19 जून सन 1990 के दिन शाम चार बजे बाबा ने निर्वाण की प्राप्ति की ।
देवरहा बाबा के चमत्कार
जनपद का मईल गाँव सरयू नदी के कटाव का शिकार हो गया था । वहां के किसान खेती की जमीन और घर को घाघरा ( सरयू ) की धारा में समाते हुए देख कर रो रहे थे । योगिराज ग्रामीणों की बिपति देख कर द्रवित हो गए । उन्होंने ग्राम वासियों को आश्वासन दिया, “अब सरजू जी कटाव बंद करेंगी, तट पर मेरी कुटिया डाल दो” । गाँव वालों ने बाबा की इच्छानुसार तट पर झोपडी डाल दी और बाबा वहीँ तपस्या में लग गये | तप के फलस्वरूप नदी का कटाव बंद हो गया और धारा की दिशा बदल गयी । इससे प्रभावित हो कर लोग दर्शनों में आने लगे ।
अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे, कुछ ऐसे ही थे चमत्कारिक, अलौकिक और रहस्यमयी ‘देवरहा बाबा’।
देवरहा बाबा आश्रम
देवरहा बाबा आश्रम, गांव मइल, तहसील बरहज, देवरिया में सरयू नदी के किनारे स्थित है।